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B.A. (Part-II) (Semester-III)
(Hindi Literature)
Examination, 2024
(Held in 2025) EXAM DATE 9 MAY 2025
(for All N.C. Candidate)
DCC-RITIKALIN KAVYA DCC ( रीतिकालीन काव्य )
Duration of Examination: 3 Hours
परीक्षा की अवधि: 3 घण्टा
Max. Marks: 70 पूर्णांक: 70
Instructions to the Candidates:
परीक्षार्थी के लिए निर्देश:-
नोट:- प्रश्न पत्र दो भागों में होगा। भाग-अ और भाग-ब
भाग-अ में 10 अनिवार्य प्रश्न होंगे। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 50 शब्दों तक सीमित होगा। प्रत्येक प्रश्न दो अंक का होगा। (10×2-20 अंक)
भाग-ब में 10 प्रश्न होंगे। छात्र को प्रत्येक इकाई से कम से कम एक प्रश्न का चयन करते हुए पाँच प्रश्नों का उत्तर देना होगा। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 400 शब्दों तक सीमित होगा। प्रत्येक प्रश्न 10 अंक का होगा। (5×10-50 अंक)

भाग-अ
(1) ‘रीतिकाल’ में ‘रीति’ शब्द से क्या अभिप्राय है ?
(2) रीतिकाल की काव्यधाराओं के नाम लिखिए।
(3) रीतिकाल की प्रमुख काव्य भाषा कौन सी है ?
(4) बिहारी की रचना का नाम बताइए।
(5) केशव की दो रचनाओं के नाम लिखिए।
(6) घनानंद की दो रचनाओं के नाम लिखिए।
(7) सेनापति के काव्य की एक विशेषता बताइए, जिसके लिए वे विशेष रूप से जाने जाते हैं।
(8) किन्हीं दो रीतिमुक्त कवियों के नाम लिखिए।
(9) रीतिकाल का कौन सा कवि ‘राष्ट्रीय कवि’ के रूप में जाना जाता है।
(10) ‘कुंदन को रंग फीको लगे, झलके अति अंगनि चारू गोराई।’ पंक्तियों के रचयिता का नाम बताइए।

भाग-ब
इकाई प्रथम
(11) निम्नांकित काव्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:-
अरे हंस या नगर में जैयो आपु विचारि।
कागनि साँ जिन प्रीति करि कोकिल दर्श बिडारि ।।
नर की अरु नल नीर की गति एक करि जोई।
जेती नीची है चले, तेती ऊँचा होई।।
अथवा
प्रेम सदा अति ऊँचो लहै सु कहँ इति भाँति की बात छकी।
सुनि के सबके मन लालच दौरे पै बौरे लखें सब बुद्धि चकी ।
जग की कविताई के धोखें रहें ह्याँ प्रवीननि कीमति जाति जकी ।
समुझे कविता घनआनंद की हिय-आँखिन नेह की पीर तकी।
(12) केशव के काव्य सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(13) देव के काव्य की प्रमुख विशेषताओं को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।

इकाई-द्वितीय
(14) निम्नांकित काव्यांशों में से किसी एक काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:-
कुंदन को रंग फीको लगें, झलके अति अंगनि चारू गोराई।
आंखिन में अलसानि, चित्तौन में मंजु विलासन की सरसाई ।।
को बिनु मोल चिकात नहीं मतिराम लहे मुसकानि मिठाई।
ज्यों-ज्यों निहारिए नेरे हैं नेननि त्यों-त्यों खरी निकरै सी निकाई ।।
अथवा
बरन बरन तरू फूले उपवन बन,
सोई चतुरंग संग दल लहियत है।
बंदी जिभि बोलत बिरद बीर कोकिल हैं,
गुंजत मधुप गान गुन गहियत है।।
आवै आस-पास पहुपन की सुवास सोई।
सोंधे के सुगंध माँझ सने रहियत है।।
सोभा कौ समाज, सेनापति सुख-साज, आज
आवत बसंत रितुराज कहियत है।।
(15) “देव के काव्य में श्रृंगार और भक्ति की धारा प्रवाहित हुई है।” पठित अंश के आधार पर इस मत को स्पष्ट कीजिए।
(16) रीतिकालीन काव्य के इतिहास में भूषण के महत्व को रेखांकित कीजिए।

इकाई तृतीय
(17) रीतिसिद्ध काव्यधारा की परिभाषा बताते हुए इसकी प्रमुख प्रवृत्तियों को स्पष्ट कीजिए।
(18) रीतिमुक्त काव्यधारा की परिभाषा बताते हुए इसकी प्रवृत्तियों एवं कलापक्ष को स्पष्ट कीजिए।
(19) बिहारी के काव्य-सौन्दर्य को सोदाहरण व्याख्यायित कीजिए।
(20) सेनापति के प्रकृति चित्रण की विशेषताओं को समझाइए ।

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